झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक, पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन, जिन्हें ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता था, का 4 अगस्त 2025 को 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया। उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस दुखद खबर की पुष्टि करते हुए लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूँ।” शिबू सोरेन लंबे समय से किडनी की बीमारी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। 19 जून 2025 को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां ब्रेन स्ट्रोक के बाद उनकी हालत गंभीर हो गई थी। हालांकि जुलाई में उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ था, लेकिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई, और राज्य सरकार ने 4 से 6 अगस्त तक तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया।
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता सोबरन सोरेन, जो एक शिक्षक थे, की महाजनों द्वारा हत्या के बाद शिबू ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आदिवासी समाज को संगठित करने का संकल्प लिया। 1970 के दशक में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया। 4 फरवरी 1973 को बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसने अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को गति प्रदान की। उनके नेतृत्व में झामुमो और आजसू के आंदोलनों के परिणामस्वरूप 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन हुआ। शिबू सोरेन को झारखंड आंदोलन का जनक माना जाता है, और उनके योगदान को पूरे देश में सम्मान के साथ याद किया जाता है।
‘गुरुजी’ के नाम से मशहूर शिबू सोरेन ने महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट कर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी। धनकटनी आंदोलन जैसे अभियानों के जरिए उन्होंने आदिवासी समुदाय को सशक्त किया और उनकी सादगी व जनता के प्रति समर्पण ने उन्हें झारखंड की राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया। उनके नेतृत्व में झामुमो न केवल एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी, बल्कि आदिवासी हितों और सामाजिक न्याय का प्रतीक भी बनी। शिबू सोरेन ने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की और कई बार लोकसभा व राज्यसभा सांसद रहे।
राजनीतिक करियर
- 1970 के दशक: आदिवासियों के अधिकारों और महाजनों व जमींदारों के शोषण के खिलाफ संघर्ष शुरू किया, धनकटनी आंदोलन जैसे अभियानों का नेतृत्व किया।
- 4 फरवरी 1973: बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की, जिसने अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन को गति दी।
- 1980: दुमका लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए, झामुमो का प्रतिनिधित्व किया।
- 1986-1989: बिहार विधानसभा के सदस्य रहे, आदिवासी कल्याण और झारखंड राज्य की मांग को मजबूती दी।
- 1991-1996: दुमका से दोबारा लोकसभा सांसद चुने गए, झारखंड राज्य आंदोलन को और तेज किया।
- 1996-1998: राज्यसभा सांसद के रूप में सेवा की, झारखंड के हितों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया।
- 2000: 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें झारखंड आंदोलन का जनक माना जाता है।
- 2002-2004: दुमका से लोकसभा सांसद चुने गए, राष्ट्रीय राजनीति में झामुमो की स्थिति को मजबूत किया।
- मई 2004 – नवंबर 2004: यूपीए सरकार में कोयला मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री रहे।
- 27 नवंबर 2004 – 1 मार्च 2005: पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने।
- 2006: राज्यसभा सांसद के रूप में चुने गए, झारखंड के हितों का प्रतिनिधित्व जारी रखा।
- 12 मार्च 2005 – 11 मार्च 2006: यूपीए सरकार में दोबारा कोयला मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री रहे।
- 27 अगस्त 2008 – 12 सितंबर 2008: दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने।
- 30 दिसंबर 2009 – 31 मई 2010: तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
- 2010 से आगे: राज्यसभा सांसद और झामुमो सुप्रीमो के रूप में सक्रिय रहे, अपने बेटे हेमंत सोरेन को झारखंड की राजनीति में मार्गदर्शन प्रदान किया।