नई दिल्ली : भारत समेत पूरी दुनिया में इन्फर्टिलिटी यानी बांझपन एक पब्लिक हेल्थ का मामला बनता जा रहा है। स्त्री और पुरुष दोनों ही इस समस्या से दो चार हो रहे हैं। दुनिया का हर छठा व्यक्ति अपने जीवनकाल में कभी न कभी इन्फर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से इन्फर्टिलिटी पर जारी पहली पहली रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। वर्ष 1990 से 2021 तक के डेटा इस अध्ययन में शामिल थे।
भारत में करीब 15 फीसदी आबादी पीड़ित
नियमित रूप से यौन संबंध के बावजूद 12 महीने या उससे अधिक समय तक गर्भधारण करने में असमर्थता को इन्फर्टिलिटी के रूप में परिभाषित किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 15 फीसदी आबादी ने जीवन में कभी न कभी इन्फर्टिलिटी का सामना किया है। जबकि दुनियाभर में तकरीबन 17।5% वयस्क जनसंख्या यानी लगभग 6 में से 1 बांझपन से पीड़ित हैं।
गहरा रही है इन्फर्टिलिटी की समस्या
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, गरीब, अमीर और मध्यम तीनों तरह के आय वर्ग वाले देशों में इन्फर्टिलिटी की समस्या गहरा रही है और इनके बीच बांझपन की प्रचलन दर में सीमित अंतर है। अमीर देशों में जीवनकाल में कभी भी इन्फर्टिलिटी की प्रचलन दर 17।8% है, जबकि कम-और मध्यम-आय वाले देशों में यह दर 16।5% है।
इन्फर्टिलिटी महिला या पुरुष की प्रजनन क्षमता से जुड़ी समस्या है। चिकित्सा के क्षेत्र में 12 महीने या उससे अधिक समय तक बिना किसी गर्भनिरोध के यौन संबंध बनाने के बावजूद गर्भधारण में असमर्थ रहने को इन्फर्टिलिटी के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह तनाव, लांछन और वित्तीय कठिनाइयों के रूप में दंपति के मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है।
इन्फर्टिलिटी का उपचार कठिन!
इन्फर्टिलिटी की समस्या की भयावहता के बावजूद, बांझपन की रोकथाम, निदान और उपचार के लिए समाधान जैसे कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) को पर्याप्त वित्त पोषण नहीं है। इलाज की उच्च लागत, सामाजिक कलंक और सीमित उपलब्धता के कारण बहुत से लोगों के लिए इन्फर्टिलिटी का उपचार कठिन है।
अध्ययन में ये हुआ खुलासा
रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल अधिकतर देशों में इन्फर्टिलिटी का उपचार बड़ी हद तक आमजन के अपने खर्चे से भुगतान किए जाते हैं, जो अक्सर भारी वित्तीय खर्चों के बोझ में बदल जाते हैं। गरीब देशों के लोग अमीर देशों के लोगों की तुलना में इन्फर्टिलिटी के उपचार पर तुलनात्मक रूप से अधिक खर्च करते हैं।
ह्यूमन रिप्रोडक्शन ओपन में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीकी (ART) के जरिए गर्भाधान का खर्च 17 देशों में 2109 अमेरिकी डॉलर से लेकर 18,592 अमेरिकी डॉलर तक था। अध्ययन के मुताबिक, एआरटी लागत और जीडीपी प्रति व्यक्ति के बीच एक नकारात्मक संबंध था, जिसमें अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया के लोगों के लिए लागत औसत रूप से जीडीपी प्रति व्यक्ति के तक़रीबन 200% थे।
WHO ने क्या कहा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के यौन और जन्मसंबंधी स्वास्थ्य और रिसर्च निदेशक डॉ पास्काल एलॉटी कहते हैं, लाखों की संख्या में लोग इन्फर्टिलिटी का उपचार कराने में भारी खर्च का सामना करते हैं। जो इससे प्रभावित होते हैं, उनके लिए एक चिकित्सा गरीबी का जाल बन जाता है। इसलिए ये एक महत्वपूर्ण न्यायात्मक मुद्दा बन चुका है। डॉ एलॉटी कहते हैं, बेहतर नीतियां और सार्वजनिक वित्त पोषण इन्फर्टिलिटी के उपचार तक पहुंच को आसान बना सकते हैं। इसके चलते लाखों परिवारों को गरीबी में गिरने से बचाया जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि दुनियाभर की सरकारों को इन्फर्टिलिटी को एक पब्लिक हेल्थ का विषय मानते हुए इस पर खर्च बढ़ाना चाहिए। जरूरतमंद समुदाय के लिए सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले प्रजनन उपाय जैसे कि आईवीएफ की पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए।
डॉक्टर विकास यादव ने बताया ये कारण
दिल्ली स्थित शारदा आईवीएफ सेंटर के डॉक्टर विकास यादव कहते हैं, मानसिक तनाव, प्रदूषण और खराब जीवनशैली हाल में इन्फर्टिलिटी की समस्या बढ़ने का मुख्य कारण हैं। अधिक उम्र में शादी करना भी एक कारण बन रहा है। उन्होंने कहा कि पुरुषाें में उम्र बढ़ने के साथ स्पर्म की मॉर्टेलिटी और क्वालिटी कम होती जाती है, उनका लिबिडो भी कम हो जाता है। वहीं, उम्र बढ़ने के साथ महिला के कंसीव करने की क्षमता भी घट जाती है।
आलस भरी लाइफस्टाइल और खराब खानपान इन्फर्टिलिटी की समस्या
नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, नई दिल्ली की फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. अस्वती नायर कहती हैं, पिछले कुछ सालों से इन्फर्टिलिटी एक प्रमुख और आम स्वास्थ्य समस्या बनके उभरी है, जिससे युवा दंपत्ति सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। आलस भरी लाइफस्टाइल, खराब खानपान, कम शारीरिक गतिविधि और स्ट्रेस बहुत ज्यादा होने से इन्फर्टिलिटी की समस्या बढ़ रही है।
द इंडियन सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन की 2019 की अंतिम रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉ। नायर कहती हैं इन्फर्टिलिटी से भारतीय आबादी का लगभग 10 से 14 प्रतिशत हिस्सा प्रभावित है, शहरी क्षेत्रों में इन्फर्टिलिटी की समस्या बहुत ज्यादा है। यहां पर छह में से एक दंपत्ति इन्फर्टिलिटी से प्रभावित है। इन्फर्टिलिटी को बढ़ाने वाले कुछ फैक्टर्स हमारे हाथ में नहीं होते हैं, लेकिन लाइफस्टाइल में बदलाव करने से गर्भधारण करने में मदद मिल सकती है।