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2024 के चुनाव में ‘एक के बदले एक’ का फॉर्मूला विपक्ष के लिए वरदान ! क्या सीएम नीतीश की रणनीति से बीजेपी हो जायेगा आउट?

April 28, 2023
in National, Top News
nitish kumar
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नई दिल्ली : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दिनों कांग्रेस लीडरशिप से मुलाकात की थी। इसके बाद वह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिलने कोलकाता पहुंचे और लखनऊ में अखिलेश यादव से भी मुलाकात की। इस दौरान उनके साथ तेजस्वी यादव भी मौजूद थे। इस तरह कई दलों के साथ नीतीश कुमार ने संवाद किया है और 2024 के लिए ‘एक के बदले एक’ का फॉर्मूला दिया है। इस फॉर्मूले के तहत हर सीट पर भाजपा के मुकाबले विपक्ष का एक ही उम्मीदवार उतारे जाने का सुझाव है। यह रणनीति कितनी सफल हो सकेगी, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन कहा जा रहा है कि महागठबंधन ने देश की 500 लोकसभा सीटों पर इस फॉर्मूले से चुनाव का सुझाव दिया है।

रणनीति पर काम करने की अपील

नीतीश कुमार ने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात में यह सुझाव दिया था। इसके बाद ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से भी इसी रणनीति पर काम करने की अपील की। यही नहीं चुनाव से पहले एक बड़े गठबंधन को भी तैयार करने की कोशिश है ताकि यह संदेश जाए कि विपक्ष एकजुट है।

नीतीश कुमार को यूपीए के संयोजक का मिल सकता है पद

सूत्रों का कहना है कि नया यूपीए बनाने की कोशिश है, जिसमें एक चेयरपर्सन होगा और एक संयोजक बनाया जाएगा। नीतीश कुमार को यूपीए के संयोजक का पद मिल सकता है। यही नहीं कोशिश की जा रही है कि संयोजक को ही पीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश किया जाए। इस नए मोर्चे का ऐलान जून तक किया जा सकता है।

1977 में एक के बदले एक के फॉर्मूले पर लड़ा गया था चुनाव

महागठबंधन के एक बड़े नेता ने कहा, ‘संयोजक का पद अहम होगा। उसे ही गठबंधन में पीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा। गठबंधन के प्रतीकात्मक मुखिया चेयरपर्सन होंगे।’ उन्होंने कहा कि एक के बदले एक के फॉर्मूले पर इससे पहले 1977 में चुनाव लड़ा गया था। तब कांग्रेस के मुकाबले जो महागठबंधन बना था, उसने हर सीट पर अपना एक उम्मीदवार उतारा था और वोटों को बांटने से रोक लिया था। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले 2004 में भी यही रणनीति बनी थी। कई क्षेत्रीय दलों के साथ मीटिंग के बाद जून तक इस फॉर्मूले का ऐलान हो सकता है।

कई राज्यों में नीतीश के फॉर्मूले पर सहमति बना पाना आसान नहीं

नीतीश कुमार ने 12 अप्रैल को दिल्ली पहुंचकर राहुल गांधी और खड़गे से मीटिंग की थी। इस मीटिंग के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि यह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अहम मीटिंग है। इससे विपक्षी एकता को मजबूती मिलेगी। यह मीटिंग राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के तीन सप्ताह बाद ही हुई थी। हालांकि नीतीश कुमार के फॉर्मूले को लेकर कुछ राज्यों में सवाल उठ सकता है, जैसे तेलंगाना, केरल, बंगाल और तमिलनाडु। इन राज्यों में क्षेत्रीय दल अपने हिस्से की सीटों में कांग्रेस को कितना मौका देंगे, यह देखने वाली बात होगी। इस पर सहमति बना पाना भी आसान काम नहीं होगा।

बिहार, बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस को दिखाना होगा संतोष

फिलहाल इस संकट से निपटने के लिए यह फॉर्मूला दिया गया है कि क्षेत्रीय दलों को उनती ताकत वाले राज्यों में पर्याप्त सीटें दी जाएं। इसके अलावा कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों जैसे क्षेत्रीय दल यदि मुकाबले में उतरना चाहें तो उन्हें भी छूट होगी। इस तरह एक बैलेंस बनाने की कोशिश होगी। जैसे बिहार की ही बात करें तो यहां आरजेडी और जेडीयू को ज्यादा सीटें मिलेंगे, जबकि लेफ्ट और कांग्रेस को कम हिस्सा दिया जाएगा। इसी तरह बंगाल में भी टीएमसी के खाते में ही ज्यादातर सीटें रहेंगी। ऐसे में लेफ्ट और कांग्रेस को संतोष दिखाना होगा या फिर वे भी मैदान में उतरेंगे।

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