दुर्गम, दुर्दांत बूढ़ा पहाड़ पर आखिरकार 22 साल बाद ‘सरकार’ के कदम पड़े. घने जंगलों में छिपा ये पहाड़ वो इलाका था जहां कभी नक्सलियों की अदालतें लगती थी और कुख्यात नक्सली अरविंद का हुक्म चलता था. माओवादी अपने फैसले सुनाते थे और जंगल में रहने वाली गरीब आदिवासी जनता इन फैसलों का पालन करने को मजबूर थीं. पुलिस यहां आती नहीं थी. अधिकारी तो आस-पास भी नहीं फटकते थे. पुलिस-अधिकारी आते भी तो कैसे ? घने जंगलों, गुफाओं से घिरे इस पहाड़ तक आने का कोई रास्ता ही नहीं था. ऊपर से माओवादियों का आतंक. राज्य सरकार के कानून यहां तक आते आते बेमानी हो जाते थे.
22 वर्ष में पहली बार पहुंचा कोई सीएम
लेकिन अब हालात बदल चूके हैं. कुछ दिन पूर्व 22 साल में पहली बार झारखंड का कोई सीएम अपनी पूरी मशीनरी के साथ इस जगह पर पहुंचा. और इस इलाके के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये की योजनाओं का ऐलान किया है. सीएम हेमंत सोरेन ने बूढ़ा पहाड़ पहुंचकर एक संदेश देने की कोशिश की थी कि अब झारखंड में नक्सलवाद अपने खात्मे की ओर है.
38 महीने की घेराबंदी
पिछले 38 महीने के दौरान राज्स के लगभाग सभी नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलियों के खिलाफ कुल 25706 अभियान चलाए गए. 11868 एलआरपी ( लॉन्ग रेंज पेट्रोलिंग) चलाए गए. जिसमें 125 मुठभेड़ की घटनाएं हुईं, मुठभेड़ में कुल 33 नक्सली मारे गये. राज्य में साल 2020 से लेकर साल 2023 के 14 फरवरी तक नक्सलियों के खिलाफ 54 इंटर स्टेट को-ऑर्डिनेशन मीटिंग हुई. 54 इंटर स्टेट ज्वाइंट ऑपरेशन चलाये गये. इस दौरान झारखंड पुलिस की आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित होकर 58 नक्सलियों ने सरेंडर किया. इस दौरान नक्सलियों के पास से 665 हथियार बरामद किए गया हैं. इनमें से 138 हथियार तो पुलिस से लूटे गए हथियार ही थे.