दिल्ली ने 1 नवंबर 2025 को दीवाली की रौनक भरी रात के बाद एक शांत लेकिन धुंधली सुबह का सामना किया। रॉकेट और पटाखों की चमक के बाद अब हवा में घना स्मॉग और अल्ट्रा-फाइन कण छाए हुए हैं। राष्ट्रीय राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) सुबह 8 बजे 350 दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ग्रीन पटाखों का उपयोग किया गया, लेकिन परिणाम पिछले वर्षों जैसा ही रहा। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) के अनुसार, दिवाली की सुबह AQI 269 था, जो अगले दिन सुबह 6:30 बजे 359 हो गया। यह ट्रेंड हर साल दोहराया जा रहा है, जहाँ पटाखों से प्रदूषण बढ़ जाता है। 

पिछले वर्षों की तुलना में स्थिति समान है। 2024 में AQI 396 तक पहुँचा, 2023 में 438, 2022 में 315, और 2021 में 454। आनंद विहार जैसे प्रदूषित क्षेत्रों में भी यही पैटर्न दिखा, जहाँ 2025 में AQI 360 रहा। सुप्रीम कोर्ट ने 2014-15 से पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन अनुपालन की कमी बनी रही। इस बार ग्रीन पटाखों को 30% कम प्रदूषण का दावा किया गया, लेकिन पर्यावरणविद भवरीन कंधारी ने इसे “कम जहर” बताते हुए खारिज किया। उन्होंने कहा, “30% कम प्रदूषण का मतलब कम जहर है? क्या आप अपने बच्चों को कम जहर देना चाहते हैं? मैं 30 साल से स्वच्छ हवा के लिए लड़ रही हूँ, लेकिन मेरे बच्चे भी क्षतिग्रस्त फेफड़ों के साथ बढ़े हैं।”
नवंबर का महीना दिल्ली के लिए प्रदूषण का चरम है, जिसमें पराली जलाना और वाहनों के उत्सर्जन की बढ़ती समस्या प्रमुख हैं। पटाखों ने इस संकट को और बढ़ा दिया। IMD और CPCB के अनुसार, AQI में PM10 और PM2.5 के स्तर बॻी रहे। यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय चिंता है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा भी है। विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए, और स्वच्छ हवा के लिए लंबे संघर्ष को दोहराया।
 
			 
			
 








 
 

