झारखंड में जंगली हाथियों की संख्या 678 से घटकर मात्र 217 रह गई है, जो डीएनए आधारित सर्वे में सामने आया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 2021 में शुरू हुए सर्वे के चार साल बाद 28 सितंबर 2025 को रिपोर्ट जारी की, जिसमें अखिल भारतीय तुल्यकालिक हाथी अनुमान (SAIEH 2025) के अनुसार राज्य में हाथियों की संख्या 149 से 286 के बीच है, औसत 217। वन्यजीव विशेषज्ञों ने इसे चिंताजनक बताते हुए मानव-हाथी संघर्ष, आवागमन गलियारों का अतिक्रमण, और प्राकृतिक आवास की कमी को मुख्य कारण बताया। झारखंड वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य डी.एस. श्रीवास्तव ने कहा कि खनन, सड़क निर्माण, और जंगलों का विनाश हाथियों के लिए खतरा बन गया है, जिससे वे राज्य से बाहर पलायन कर रहे हैं।
झारखंड का 31.51% क्षेत्र वन है, लेकिन पलामू बाघ अभयारण्य और कोल्हान प्रमंडल जैसे क्षेत्रों में हाथी आबादी घनिष्ठ है। रिपोर्ट में कहा गया कि आवास हानि से हाथी हजारीबाग और रांची जैसे नए क्षेत्रों में पहुँच रहे हैं, जिससे संघर्ष बढ़ा है। 2004-2017 के बीच 30 हाथियों की मौत हुई, जिसमें बीमारी, शिकार, रेल दुर्घटना, और बिजली का झटका प्रमुख कारण रहे। हाल के वर्षों में पश्चिमी सिंहभूम में IED विस्फोटों में पाँच हाथियों की मौत हुई। 2019-20 से 2024-25 तक 474 लोगों की मौत हाथी संघर्ष में हुई। मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) एस.आर. नटेश ने कहा कि रिपोर्ट का अध्ययन जारी है, क्योंकि यह उनके अनुमान से कम है। राज्य का राजकीय पशु होने के बावजूद हाथी संरक्षण में कमी की बात सामने आई है।
भारत में हाथियों की कुल संख्या 22,446 है, जिसमें कर्नाटक (6,013), असम (4,159), और तमिलनाडु (3,136) प्रमुख हैं। झारखंड में हाथियों का पलायन बढ़ रहा है, जो वन संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन की आवश्यकता को दर्शाता है। विशेषज्ञों ने सरकार से आवागमन गलियारों को सुरक्षित करने और बांस की कमी दूर करने की मांग की है।










