सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्टूबर 2024 को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सरकार की आलोचना पर पत्रकारों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह फैसला उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के खिलाफ दर्ज मामले के संदर्भ में आया है। पत्रकार ने ‘यादव राज बनाम ठाकुर राज’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसके बाद उनके खिलाफ 20 सितंबर 2024 को हजरतगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत पत्रकारों के अधिकार संरक्षित हैं।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि किसी पत्रकार की लेखनी को सरकार की आलोचना माना जाता है, उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए कहा और मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद निर्धारित की। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। इस फैसले ने पत्रकारों के अधिकारों को मजबूत किया है और सरकार की आलोचना को लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया है।
इस फैसले का व्यापक प्रभाव हो सकता है, क्योंकि यह पत्रकारों को उनके कार्यों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है और सरकार की आलोचना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्रकारों के खिलाफ दर्ज मामलों में राज्य के कानून लागू करने वाले तंत्र का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। यह फैसला उन मामलों के लिए भी महत्वपूर्ण है जहां पत्रकारों को उनके लेखन के लिए निशाना बनाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट संदेश दिया है कि लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए और सरकार की आलोचना पर पत्रकारों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।