- गुरु के बिना समाज की कल्पना अधूरी है
- अनुभव – नौशाद आलम, डीआईजी पलामू रेंज
मेदिनीनगर:
शिक्षक दिवस पर प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन झारखंड द्वारा आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह में शामिल होकर मेरे मन में शिक्षा की मौजूदा परिस्थितियों पर कई प्रश्न उठे।
आज हमारे देश में एक सच्चाई साफ़ झलक रही है—
निजी विद्यालयों की संख्या और लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ रही है।
माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों की बजाय निजी विद्यालयों में भेजना पसंद कर रहे हैं, भले ही वहाँ की फीस अपेक्षाकृत बहुत अधिक क्यों न हो।
यह विडंबना है कि—
🔹 सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों का वेतन निजी विद्यालयों से कई गुना अधिक है।
🔹 लेकिन इसके बावजूद शिक्षा की गुणवत्ता वहाँ उच्च स्तर तक नहीं पहुँच पा रही है।
🔹 परिणामस्वरूप, साधारण परिवार भी अपनी आय का बड़ा हिस्सा काटकर निजी विद्यालयों की ओर रुख कर रहे हैं।
📉 यदि यह प्रवृत्ति यूँ ही जारी रही, तो आने वाले समय में शिक्षा में असमानता और अधिक गहराई तक घर कर जाएगी।
क्या किया जा सकता है?
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1. सरकारी विद्यालयों में जवाबदेही (Accountability) बढ़ाना होगा। शिक्षकों के प्रशिक्षण और समयबद्ध मूल्यांकन की आवश्यकता है।
2. इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास जरूरी है। बच्चों को वही सुविधाएँ मिलनी चाहिए जो निजी संस्थान देते हैं।
3. पढ़ाई के तरीक़ों में बदलाव। नए, सरल और रोचक शिक्षण पद्धतियाँ अपनानी होंगी।
4. Pedagogy System of education should be implements.
५. सामाजिक-सरकारी साझेदारी। शिक्षा सिर्फ़ सरकार की नहीं बल्कि पूरे समाज की सामूहिक ज़िम्मेदारी है।
💡 मेरा मानना है कि—
यदि सरकारी विद्यालयों में गुणवत्ता को मज़बूत किया जाए तो न केवल आर्थिक बोझ कम होगा बल्कि शिक्षा में समान अवसर भी सुनिश्चित होंगे।
The guidelines of —new education policy 2024,the equality of education in India .
इस अवसर पर मैं सभी शिक्षकों का अभिनंदन करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि हम मिलकर भारत के शिक्षा तंत्र को नई ऊँचाई पर ले जाने का भरसक प्रयास करेंगे ।
नौशाद
DIG Palamu