रांची: रामगढ़ उपचुनाव में हार ने महागठबंधन सरकार के लिये परेशानियां खड़ी कर दी है. सरकार के विकास के दावों पर जनता ने भरोसा नहीं जताया. सरकार की योजनाएं भी जनता को पसंद नहीं आई. लेकिन इस चुनाव के आसपास में जो सबसे बड़ा मुद्दा था वो नियोजन नीति और रोजगार. यही वजह है कि रामगढ़ उपचुनाव में 13 निर्लदलीयों में से 12 प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े थे. जब हम यू-ट्यूब पर विधानसभा की कार्यवाही की लाइव स्ट्रिमिंग देख रहे हैं तो भी उसके चैट ऑपशन में लगातार नौकरी, रोजगार और नियोजन नीति को लेकर लोग लिख रहे हैं. सरकार से किसी भी हाल में रोजगार की मांग कर रहे हैं.
युवा मांगे हर हाल में रोजगार
हेमंत सरकार की बनाई नियोजन नीति के रद्द हो जाने के बाद सीएम हेमंत सोरेन ने युवाओं से रिकॉर्डेड ऑडियो मैसेज से राय मांगी थी, कहा जा रहा है कि सरकार 2016 से पहले की नियोजन नीति पर आगे बढ़ सकती है. लेकिन युवाओं की नजर से देखें तो उनका बस यही कहना है कि नीति चाहे जो भी हो नियुक्तियां हों, रोजगार मिले. JPSC से लेकर SSC तक कोई भी प्रतियोगी परीक्षा हो, कहीं ना कहीं विवादों में घिर जाती है, रद्द हो जाती और निराशा हाथ युवाओं को लगती है.
महागठबंधन के लिये खतरे की घंटी
रामगढ़ उपचुनाव को सरकार के लिटमस टेस्ट के तौर पर भी देखा जा रहा है. 2019 विधानसभा चुनाव के बाद से सत्ता पक्ष ने 4 उपचुनाव जीते थे, लेकिन रामगढ़ में ये रिकॉर्ड थम गया. रामगढ़ के नतीजे ने जीत के घोड़े पर सवार हेमंत सरकार को जमीन पर ला दिया है. और आगामी 2024 के चुनाव से पहले महागठबंधन के लिये किसी खतरे की घंटी की तरह है. देश के गिने चुने राज्यों में सत्तासुख भोग रही कांग्रेस को झारखंड में संगठन और गुटबाजी की समस्या पर भी मंथन की जरुत है. वहीं इस परिणाम ने कुर्मी, महतो वोटों को लेकर भी मैसेज है.
आजसू को सम्मान, बीजेपी के लिये वरदान
वहीं विपक्ष की बात करें तो इस जीत ने आजसू का सम्मान कुछ हद तक लौटा दिया है तो बीजेपी में भी नई उर्जा का संचार होगा. विपक्ष को ये लगने लगेगा कि सरकार का नाकामियों रामगढ़ की जनता तक पहुंचाने का उनका मकसद सफल रहा,और अब मिशन 2024 में इसको लेकर आगे बढ़ा जा सकता है. आजसू के लिये ये जीत इस लिये भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि झारखंड गठन के बाद से रामगढ़ में लगातार उनकी जीत हो रही थी. 2019 में चंद्रप्रकाश चौधरी के गिरिडीह से सांसद चुने जाने के बाद विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी सुनीता चौधरी को उतारा गया लेकिन वो आजसू के गढ़ में जीत की चौकड़ी नहीं लगवा सकीं. इस जीत ने चंद्रप्रकाश चौधरी की कर्मभूमि में उनकी पकड़ को वापस लाया है. वहीं इस रिजल्ट ने ये भी बता दिया की अलग-अलग चुनाव में जाने की जगह जब एनडीए ने एकजुटता दिखाई को परिणाम बदल गए.