बेंगलुरु : कर्नाटक के 224 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत कर नई इबारत लिखी है। वहीं बीजेपी कर्नाटक ही नहीं पूरे दक्षिण भारत से आउट हो गई। इस जीत का श्रेय राहुल गांधी ने कांग्रेस के डीके शिवकुमार, सिद्दारमैया सहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं और कर्नाटक की जनता को दिया। लेकिन इस जीत में सबसे अहम रोल अगर किसी का रहा तो वो लिंगायत है। कर्नाटक में लिंगायत 17 प्रतिशत है और लगभग 80 विधानसभा सीटों पर हार-जीत तय करते है। इन 80 सीटों में से कांग्रेस ने 53 सीटें जीतीं हैं। जबकि बीजेपी ने सिर्फ 20 सीटें जीती हैं। 40 साल कांग्रेस को इतने सीटों पर जीत की कामयाबी मिली है।
3 अक्टूबर, 1990 को शोभायात्रा के दौरान भड़क उठा था दंगा
कांग्रेस को कर्नाटक में ऐसे ही जीत नहीं मिली। इसके लिए उसने कड़ी मेहनत की। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एक गलती को सुधारने में राहुल गांधी सहित पूरी कांग्रेस नेताओं को काफी मशक्कत करना पड़ा। 1990 में लिंगायत नेता वीरेंद्र पाटिल कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। 3 अक्टूबर, 1990 को कर्नाटक के दावणगेरे में हिन्दुओं की एक शोभायात्रा निकाले जाने के बाद इलाके में दंगे भड़क उठे थे। इस शोभा यात्रा के दौरान एक मुस्लिम लड़की को छेड़े जाने के विवाद ने बड़ा रूप ले लिया था। तब दोनों समुदायों में काफी खून-खराबा हुआ था।
राजीव गांधी के एक फरमान से खफा हो गए थे लिंगायत
चूंकि, उस वक्त मुख्यमंत्री पाटिल को हार्ट अटैक आया था और वह आराम कर रहे थे। इसलिए उन पर दंगों को कंट्रोल करने में विफल रहने का आरोप लगा। जब राजीव गांधी बतौर कांग्रेस अध्यक्ष डैमेज कंट्रोल वहां पहुंचे तो उन्होंने हवाई अड्डे से ही मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को हटाने का फरमान सुना दिया था। इससे लिंगायतों में कांग्रेस के खिलाफ रोष उत्पन्न हो गया और धीरे-धीरे लिंगायत मतदाता कांग्रेस से दूर हो गए, जबकि लिंगायत कांग्रेस के परंपरागत वोटर थे।
दो बार अप्रत्याशित तरीके से हटाए गए थे पाटिल
1989 में जब राजीव गांधी और कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता खो दी थी, तब वीरेंद्र पाटिल ने कर्नाटक में जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े और जनता पार्टी के एच डी देवेगौड़ा दोनों को हराकर पार्टी को प्रभावशाली जीत दिलाई थी। उस वर्ष बाद में प्रधानमंत्री बनने वाले देवगौड़ा अपनी विधानसभा सीट भी नहीं बचा पाए थे। बावजूद इसके एक अच्छे प्रशासक के रूप में मशहूर रहे पाटिल को दो बार अप्रत्याशित परिस्थितियों में मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। 1990 से पहले 1971 में भी उन्हें इसी तरह से पद से हटना पड़ा था। दोनों बार उन्हें हटाकर कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।
राहुल ने भूल को सुधारते हुए लिंगायतों को अपने पाले में किया
33 साल बाद राहुल गांधी ने उस भूल को सुधारते हुए लिंगायतों को अपने पाले में करने के लिए काफी मशक्कत की और नतीजा कांग्रेस के पक्ष में रहा। राहुल गांधी ने लिंगायतों को साधकर इस बार के चुनावों में बड़ी जाती हासिल कर राज्य में नई इबारत लिखी है। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता रहे जगदीश शेट्टार और पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी से लेकर कई लिंगायत नेताओं को पार्टी में शामिल किया और लिंगायतों की लंबी मांग कि अलग धर्म का दर्जा दिया जाय, उस पर भी हामी भरी।
इस कारण से बीजेपी से नाराज हो गये थे लिंगायत
इन कदमों से नाराज लिंगायत समुदाय का एक बड़ा धड़ा एक बार फिर कांग्रेस की तरफ चला आया। वैसे भी लिंगायत बी एस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से भाजपा से नाराज चल रहे थे। उन्हें भाजपा से इतर नए राजनीतिक ताकत की तलाश थी, जिसका रास्ता कांग्रेस तक जाता था। लिंगायत राजीव गांधी के कदम के बाद नाराज होकर भाजपा की तरफ चले गए थे, जिससे दक्षिणी राज्य में भाजपा मजबूत हो गई थी।









