रांची : राजभवन ने हेमंत सरकार को एक बार फिर झटका दिया है। महत्वाकांक्षी 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक के बाद ओबीसी सहित कुछ अन्य वर्गों के आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने (झारखंड पदें एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण संशोधन विधेयक 2022) वाला विधेयक भी राजभवन ने लौटा दिया है। पूर्व राज्यपाल रमेश बैस के समय ये दोनों विधेयक विधानसभा से पास होने के बाद राजभवन भेजे गये थे। कोई तकनीकी अड़चन न पड़े इसके लिए नौवीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की गई थी। तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने उसी समय विधेयक पर महा न्यायवादी (अटार्नी जनरल) से मंतव्य मांगा था। अटार्नी जनरल का मंतव्य अब आया है।
राज्यपाल ने विधेयक को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरीत बताया
राजभवन सूत्रों के अनुसार राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने विधेयक को राज्य सरकार को वापस करते हुए इसे अटार्नी जनरल के मंतव्य के हवाले विधेयक को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरीत बताया है। और राज्य सरकार इसकी समीक्षा करने का निर्देश दिया है। अटार्नी जनरल के मंतव्य के हवाले राज्यपाल ने कहा है कि सूप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में जातिगत आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की है जबकि झारखंड के आरक्षण विधेयक में आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 67 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है।
सरकार ने आरक्षण विधेयक में दिया था ये प्रस्ताव
बता दें कि इस आरक्षण विधेयक में ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) को आरक्षण की सीमा 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत और अनुसूचित जाति को 10 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने का प्रस्ताव था। प्रदेश में 50 प्रतिशत से अधिक आबादी ओबीसी की है। इसके आरक्षण में 13 प्रतिशत की वृद्धि का प्रस्ताव था इसलिए यह ओबीसी आरक्षण विधेयक के रूप में ज्यादा चर्चित है। इनकी आबादी और वोट को देखते हुए कांग्रेस ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत करने को लेकर लंबे समय से संघर्षरत थी। अपनी ही गठबंधन की सरकार में इस मांग की पूर्ति को लेकर कांग्रेस के तमाम मंत्री और बड़े नेता सड़क पर उतरे थे।
अब ये विधेयक भी फंस गया !
वहीं सत्ताधारी झामुमो ने भी माइलेज लेने के लिए केंद्रीय कमेटी के जलसे में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का वादा कर एजेंडे को झटकने का प्रयास किया था। 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति से संबंधित विधेयक भी वापसी के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्यपाल पर जमकर बरसे थे। हालांकि यह विधेयक फंस गया है। इसके बावजूद एक दिन पहले ही अपनी कैबिनेट में शिक्षा मंत्री रहे जगरनाथ महतो के श्राद्ध कर्म में शामिल होने पहुंचे हेमंत सोरेन ने मीडिया कर्मियों से कहा कि 1932 का विषय अभी खत्म नहीं हुआ है। जगरनाथ दा की सोच के अनुसार इसे आगे बढ़ायेंगे। उनके 1932 के सपने को पूरा करेंगे।