हाल ही में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। शुक्रवार को रुपया 83.99 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर है। इस गिरावट का मुख्य कारण तेल की बढ़ती कीमतें और विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से धन की निकासी है। तेल की कीमतों में उछाल के कारण भारत को अपने आयात बिल में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ गया है। इसके अलावा, वैश्विक बाजार में अस्थिरता और भू-राजनीतिक तनाव भी इस गिरावट के प्रमुख कारणों में शामिल हैं।
सरकार ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि वे रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रहे हैं। वित्त मंत्रालय ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करके बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है ताकि रुपये की अत्यधिक गिरावट को रोका जा सके। इसके अलावा, सरकार ने तेल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाने की योजना बनाई है। वित्त मंत्रालय ने यह भी कहा कि वे विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नीतिगत सुधारों पर काम कर रहे हैं।
भविष्य में, विशेषज्ञों का मानना है कि यदि तेल की कीमतें स्थिर नहीं होती हैं और विदेशी निवेशकों का विश्वास बहाल नहीं होता है, तो रुपये पर दबाव बना रह सकता है। हालांकि, सरकार और RBI की संयुक्त प्रयासों से उम्मीद की जा रही है कि रुपये की स्थिति में सुधार होगा। इसके अलावा, सरकार ने आर्थिक सुधारों और निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, जिससे दीर्घकालिक दृष्टिकोण में भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।