भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी का 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें निमोनिया के कारण 19 अगस्त को एम्स, दिल्ली में भर्ती कराया गया था, जहां उनका इलाज चल रहा था। 12 सितंबर 2024 को उन्होंने अंतिम सांस ली। येचुरी ने अपने जीवन के अंतिम समय तक अपने शरीर को चिकित्सा अनुसंधान के लिए एम्स को दान करने की इच्छा व्यक्त की थी। उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण और सम्मानित नेता का अंत हो गया है।
सीताराम येचुरी के निधन पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने शोक व्यक्त किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उन्हें “भारत की विचारधारा के रक्षक” के रूप में याद किया और कहा कि वे उनके साथ हुई लंबी चर्चाओं को याद करेंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने इसे “राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति” बताया। सीपीआई (एम) के नेता ईपी जयराजन ने इंडिगो एयरलाइंस के बहिष्कार को समाप्त कर दिल्ली के लिए उड़ान भरी, ताकि वे येचुरी को अंतिम श्रद्धांजलि दे सकें।
सीताराम येचुरी ने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं। उन्होंने 1974 में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और जल्द ही जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बने। 1984 में वे सीपीआई (एम) की केंद्रीय समिति के सदस्य बने और 1992 में पोलित ब्यूरो के सदस्य बने। 2015 में उन्होंने प्रकाश करात के बाद सीपीआई (एम) के महासचिव का पद संभाला और 2022 तक इस पद पर बने रहे। उनके नेतृत्व में पार्टी ने कई महत्वपूर्ण राजनीतिक लड़ाइयाँ लड़ीं और धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर मजबूती से खड़ी रही।
येचुरी के निधन के बाद, सीपीआई (एम) ने उनके योगदान को याद करते हुए कहा कि वे हमेशा पार्टी के मार्गदर्शक रहेंगे। पार्टी ने यह भी घोषणा की कि वे उनके विचारों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाते रहेंगे। जनता ने भी उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया और उन्हें एक सच्चे जननेता के रूप में याद किया। सोशल मीडिया पर लोगों ने उनके प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं और उनके योगदान को सराहा। उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है, जिसे भरना मुश्किल होगा।