आज दिनांक 29 जून 2024 को 10 बजे स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग एवं राष्ट्रकवि दिनकर प्रतिष्ठान के संयुक्त तत्वावधान में दिनकर की 50वीं पुण्य स्मृति के उपलक्ष्य में रश्मिरथी संवाद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो तपन कुमार शांडिल्य ने दिनकर की इन पंक्तियों से शुरुआत की, जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। उन्होंने कहा कि कहा कि यह पंक्तियां और उनकी कविताएं हमें जीवन में अनुशासन और संस्कार सिखाते हैं। दिनकर एक कुशल राजनीतिज्ञ,प्रशासक,कवि, साहित्यकार के रूप में बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होने आगे कहा कि जेपी आंदोलन में ‘सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है’ पंक्तियां काफी महत्वपूर्ण और सार्थक रही।
आज भी इनकी कविताएं प्रासंगिक हैं। कुलपति dr शांडिल्य ने कहा कि दिनकर अपनी राष्ट्रवादी कविताओं के परिणामस्वरूप विद्रोही कवि के रूप में उभरे । उनकी कविताओं में वीर रस झलकता था और उनके प्रेरक देशभक्ति रचनाओं के कारण उन्हें राष्ट्रकवि और युगचरण के रूप में सम्मानित किया गया। उन्होंने दिनकर की पहली रचना रेणुका का उल्लेख करते हुए कहा कि यह तीस के दशक में प्रकाशित हुई थी और उनके द्वारा प्रकाशित हुंकार ने देश के युवाओं में एक ऊर्जा का संचार कर दिया था। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि दिनकर जी के पौत्र ऋत्विक उदयन ने कहा कि रश्मिरथी संवाद के जरिए हम दिनकर साहित्य को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते हैं। इस श्रृंखला के तहत पूरे भारतवर्ष के विभिन्न संस्थानों में 50वीं पुण्य स्मृति पर 50कार्यक्रम आयोजित होंगे।
दिनकर प्रतिष्ठान के साकेत कुमार ने रश्मिरथी का पाठ करते हुए उसकी व्याख्या की एवं कई तकनीकी पहलुओं से दिनकर साहित्य के प्रचार प्रसार करने की बात कही। डॉ जंग बहादुर पाण्डेय ने दिनकर जी को आग और राग के कवि के रूप में व्याख्या की। इससे पहले हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ जिन्दर सिंह मुण्डा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि दिनकर जी जनकवि हैं एवं इनके लेखनी और करनी में समानता है। कार्यक्रम का संचालन डॉ मृत्युंजय कोईरी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ जितेन्द्र सिंह ने किया। इस कार्यक्रम के सफल संचालन में संगीता कुमारी,संजय,रेखा,सुधीर, नेहा, रजनीश एवं हिन्दी विभाग के सभी विद्यार्थियों की सराहनीय भूमिका रही। यह जानकारी पीआरओ प्रो राजेश कुमार सिंह ने दी।