लंदन : ब्रिटेन में वैज्ञानिकों ने ऐसा अर्ली वॉर्निंग सिस्टम यानी पूर्व चेतावनी देने वाला सिस्टम बनाया है, जो अगली महामारी आने से पहले बता देगा। ये अर्ली वॉर्निंग सिस्टम जेनेटिक है। यानी जेनेटिक अर्ली वॉर्निंग सिस्टम। यह सिस्टम सटीकता के साथ बता देगा कि कौन सा रेस्पिरेटरी वायरस खतरनाक रूप ले सकता है।
वैज्ञानिकों ने ईजाद की तकनीक
कैंब्रिजशायर स्थित वेलकम सैंगर इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिकों की टीम यह अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बनाया है। यह सेंटर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ जेनेटिक रिसर्च और डीएनए सिक्वेंसिंग करने वाला केंद्र है। अब वो इसे सस्ता और आसानी से मिलने वाली तकनीक में बदल रहे हैं। ताकि दुनिया भर में इस सिस्टम को दिया जा सके। इस सिस्टम के जरिए पूरी दुनिया में वायरसों पर निगरानी रखी जा सकेगी। इसमें इंफ्लूएंजा वायरस, रेस्पिरेटरी सिनशियल वायरस, कोरोना वायरस और अन्य पुराने पैथोजन शामिल हैं।
कैसे चलेगा पता ?
इस सिस्टम को बनाने वाले प्रोजेक्ट का मकसद था रेस्पिरेटरी वायरस और माइक्रोबायोम इनिशिएटिव का पता करना। ताकि ऐसी डीएनए सिक्वेसिंग टेक्नोलॉजी बनाई जा सके जो वायरल, बैक्टीरियल और फंगल प्रजातियों के फैलने और भविष्य में आने वाली महामारियों का पता कर सके। इसके लिए मरीजों के नाक से लिए गए सैंपल ही मुख्य आधार बनेंगे।
इसी इंस्टीट्यूट ने दी थी दुनिया को कोरोना की पहली सूचना
इस सिस्टम को बनाने वाले प्रमुख वैज्ञानिक एवान हैरिसन ने बताया कि ब्रिटेन जिनोमिक सर्विलांस में दुनिया में सबसे आगे है। पूरी दुनिया में जितनी जीनोम सिक्वेंसिंग कोरोना की हुई है, उसमें से 20 फीसदी ब्रिटेन में हुई है। एवान ने कहा कि हमने जो तकनीक बनाई उसने कोविड-19 की मॉनिटरिंग में बहुत मदद की। साथ ही पूरी दुनिया के कोरोना से लड़ने में उपयोगी साबित हुई।
20 साल में तीन बार फैली महामारी
एवान ने बताया कि अब हम इस तकनीक को और बड़ा कर चुके हैं। हम पूरी दुनिया पर नजर रख सकते हैं। सभी प्रकार के रेस्पिरेटरी वायरस पर नजर रख सकते हैं। खास तौर हम यह बता सकते हैं कि ऐसे कौन-कौन से फैक्टर्स हैं, जिनसे महामारी फैलती है। कहां वो फैक्टर्स चल रहे हैं। कब किस तरह के वायरस की महामारी फैलेगी। पिछले 20 सालों में तीन बार कोरोना वायरस के अलग-अलग रूप सामने आए। चीन में सार्स। मिडिल ईस्ट में मर्स और फिर कोरोना वायरस।
अब पता चलेगा कौन सा वैरिएंट होगा कितना खतरनाक
दिसंबर 2020 के बाद से जो भी जीनोमिक सर्वे हुए हैं, उन्हीं का नतीजा है कि हम कोरोना के अलग-अलग वैरिएंट्स का पता कर पाए। कब कौन सा वैरिएंट कितना खतरनाक होगा। ये बता पाते थे। सैंगर इंस्टीट्यूट में जीनोमिक सर्विलांस यूनिट के प्रमुख जॉन सिलिटो कहते हैं कि यह अर्ली वॉर्निंग सिस्टम एक गेमचेंजर है। हमने कई वैरिएंट्स के फैलने और उससे नए वैरिएंट निकलने की भविष्यवाणी कर पाए।
पूरी दुनिया में दिया जाएगा अर्ली वॉर्निंग सिस्टम
जॉन कहते हैं कि अब यह तकनीक पूरी दुनिया की प्रयोगशालाओं में होनी चाहिए। ताकि हर देश अपने स्तर पर किसी भी महामारी के आने की भविष्यवाणी समय रहते कर सके। इससे पूरी दुनिया में जांच होगी तो हम आसानी से पता कर सकेंगे कि किस देश से महामारी फैल सकती है। किस वायरस का कौन सा वैरिएंट कितना खतरनाक होगा। ये पता कर सकते हैं। हमें ऐसे ही सिस्टम को पूरी दुनिया में लगाना है।
पूरी दुनिया में लगेगा सिस्टम तो जल्दी पता चलेंगी महामारियां
दुनिया भर के कई देशों में लैब्स में छोटी सिक्वेंसिंग मशीने हैं। वो बहुत ज्यादा सैंपल को हैंडल नहीं कर सकते। इसलिए हमने ऐसा सिस्टम बनाया जो तेजी से ज्यादा मात्रा के सैंपल की जांच करके। रिपोर्ट दे सके। हम एक साल के अंदर ऐसा सिस्टम बना देंगे जिससे पूरी दुनिया में उसे लगाया जा सके। हर देश इस बात की तैयारी में रहे कि अगली महामारी में कैसे बचा जाए। वह महामारी कब आएगी।
दुनिया को अगली महामारी से बचाने का प्रयास
जॉन ने कहा कि अभी इस तकनीक की वजह से हम कई रेस्पिरेटरी वायरसों के 2000 जीनोम सिक्वेंसिंग कर चुके हैं। लेकिन हम चाहते कि हर वायरस की हजारों सिक्वेंसिंग हो। ताकि हर वैरिएंट की जानकारी हमारे पास रहे। इसके जरिए हम विकसित हो रहे यानी फैलने का खतरे वाले वैरिएंट की पहचान कर लेंगे। इससे दुनिया को अगली महामारी से बचा सकेंगे।