भारत में चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाने और बार-बार होने वाले चुनावों की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ योजना को मंजूरी दे दी है। इस योजना के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। यह प्रस्ताव पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति द्वारा तैयार किया गया था। सरकार का कहना है कि इस योजना से चुनावी खर्च में कमी आएगी और प्रशासनिक बोझ भी कम होगा। इस योजना को अगले पांच वर्षों में लागू करने की योजना है।
हालांकि, इस योजना को लेकर आलोचनाएं भी हो रही हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है और इससे क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी हो सकती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी असर पड़ सकता है। वहीं, अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में इस तरह की प्रणाली पहले से ही लागू है और वहां इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। इन देशों में चुनावी खर्च में कमी आई है और प्रशासनिक कार्यों में भी तेजी आई है।
सरकार का कहना है कि यह योजना देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और इससे बार-बार होने वाले चुनावों से होने वाली रुकावटें कम होंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में भी इस योजना का समर्थन किया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस योजना की आलोचना करते हुए कहा है कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। जनता की प्रतिक्रिया भी मिली-जुली है; कुछ लोग इसे सकारात्मक कदम मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मानते हैं।