कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने चाईबासा सिविल कोर्ट के एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट को चुनौती देते हुए झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। चाईबासा कोर्ट ने 22 मई 2025 को राहुल गांधी को 26 जून 2025 को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ राहुल गांधी ने सीआरपीसी की धारा 205 के तहत पेशी से छूट की अर्जी दी थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद, उन्होंने निचली अदालत के इस फैसले को रद्द करने की मांग के साथ झारखंड हाईकोर्ट का रुख किया। यह मामला 2018 में दिए गए एक कथित मानहानिकारक बयान से जुड़ा है, जिसने अब कानूनी जटिलताओं को और बढ़ा दिया है।
- मानहानि मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद 28 मार्च 2018 को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के प्लेनरी सेशन में राहुल गांधी के एक भाषण से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने भाजपा नेताओं पर तीखी टिप्पणी करते हुए उन्हें “हत्यारा” और “झूठा” कहा था। इस बयान को लेकर भाजपा नेता प्रताप कुमार ने 9 जुलाई 2018 को चाईबासा सीजेएम कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया। मामला पहले रांची के स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में स्थानांतरित हुआ, फिर हाईकोर्ट के आदेश पर चाईबासा एमपी-एमएलए कोर्ट में भेजा गया। कोर्ट ने राहुल गांधी को कई बार समन और बेलेबल वारंट जारी किए, लेकिन उनकी अनुपस्थिति के बाद गैर-जमानती वारंट जारी किया गया। राहुल गांधी ने पहले भी इस वारंट के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन मार्च 2024 में उनकी याचिका निस्तारित हो गई और मार्च 2025 में उन्होंने एक अन्य याचिका वापस ले ली थी। - कानूनी जंग
राहुल गांधी का हाईकोर्ट में ताजा याचिका दायर करना इस मामले में उनकी कानूनी रणनीति का हिस्सा है। चाईबासा कोर्ट के 25 अप्रैल 2024 को दिए गए स्टे आदेश को हटाए जाने के बाद गैर-जमानती वारंट जारी हुआ, जिसे अब राहुल गांधी ने चुनौती दी है। यह मामला न केवल राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, बल्कि यह मानहानि के कानूनी दायरे और नेताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाता है। हाईकोर्ट के फैसले पर सभी की नजरें टिकी हैं, क्योंकि यह न केवल राहुल गांधी के लिए, बल्कि राजनीतिक बयानबाजी से जुड़े कानूनी मामलों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है।