आज दिनांक 22 मई को अपराह्न 11 बजे dr श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के सभागार में विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा भारतीय दार्शनिक दिवस, 2024 का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कुलपति dr तपन कुमार शांडिल्य की अध्यक्षता में एक व्याख्यान सह कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के तौर पर dr श्यामल किशोर, सह प्राध्यापक, टीपीएस कॉलेज, पटना, विशिष्ट अतिथि के रूप में dr एचपी नारायण , पूर्व विभागाध्यक्ष, न्यूरो सर्जरी, रिम्स, रांची और सारस्वत अतिथि के तौर पर पूर्व मानविकी संकायाध्यक्ष, रांची विश्वविद्यालय, dr सरस्वती मिश्रा आमंत्रित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति dr तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि आज भारतीय दार्शनिक दिवस की प्रासंगिकता इस बात से है कि यह आदि शंकराचार्य की जयंती से जुड़ा है। उन्होंने विद्यार्थियों को अपने संबोधन में कहा कि दर्शनशास्त्र सभी विषयों की जननी है।
उन्होंने इसी क्रम में यह भी कहा कि आज की युवा पीढ़ी को प्राचीन ग्रंथों , वेद और गीता को अधिकाधिक पढ़ना चाहिए ताकि हम अपने समृद्धशाली अतीत को जान सकें। उन्होंने कहा कि भारत प्राचीन काल में गौतम बुद्ध के समय विश्ववगुरु के रूप में जाना जाता था और जो भारत अतीत में विश्ववगुरु था, उसे आप विद्यार्थी अपने प्रयासों के द्वारा भविष्य में भी विश्ववगुरू बनाने में अपना सार्थक योगदान दे । इसके उपरांत उन्होंने विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिए शंकराचार्य के जीवनवृत का उल्लेख करते हुए बताया कि एक अल्प अवधि तक जीवन प्राप्त करने वाले इस विद्वान ने दर्शनशास्त्र पर सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त की थी। उन्होंने अपने संबोधन में मार्क्सवादी सिद्धांतों की चर्चा कर उसे दर्शनशास्त्र से जोड़ा। मुख्य वक्ता dr श्यामल किशोर ने भारतीय दार्शनिक दिवस की प्रासंगिकता को शंकराचार्य की विद्वता और महत्ता से जोड़ते हुए बताया कि शंकरचार्य एक धरती, एक परिवार और मानवतावाद के सिद्धांत के पुरोधा हैं। उन्होंने भारतीय दर्शन को प्राचीन काल से ही एक दिशा निर्देशक के रूप में माना।
उन्होंने शंकराचार्य का उल्लेख करते हुए कहा कि वे न तो परंपरावादी थे, न स्थिरवादी, बल्कि वह परिवर्तन में विश्वास रखते थे। विशिष्ट अतिथि dr एचपी नारायण ने भारतीय दार्शनिक दिवस के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि दर्शनशास्त्र हमें जीवन को जीने की कला सिखाता है। इसमें जीवन का सार निहित है। उन्होंने गीता के श्लोकों की विस्तार से चर्चा की। Dr सरस्वती मिश्रा ने कहा कि मनुष्य के जन्म के साथ ही दर्शन की यात्रा प्रारंभ हो जाती है। साथ ही उन्होंने कहा कि तार्किक विश्लेषण के आधार पर हम दर्शन को प्राप्त कर सकते है। जीवन में हमें दुख से निवृति और आनंद के प्राप्ति की चाह होती है। कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों के द्वारा आदि शंकराचार्य के चित्र पर माल्यार्पण के साथ की गई।इसके उपरांत डीएसपीएमयू के दर्शनशास्त्र की विभागाध्यक्ष dr आभा झा ने अतिथियों का स्वागत किया और विषय प्रवेश कराते हुए आदि शंकराचार्य के जीवन वृत्त पर विस्तार से प्रकाश डाला । कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन dr धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने किया। मौके पर प्रॉक्टर dr पंकज कुमार, dr विनोद कुमार, dr रेखा झा, dr अनूप प्रसाद, dr गुड़िया कुमारी के अलावा विश्वविद्यालय के अन्य शिक्षक और विद्यार्थी मौजूद थे। यह जानकारी पीआरओ प्रो राजेश कुमार सिंह ने दी।