झारखंड में जातीय जनगणना का मुद्दा अब तक केवल राजनीतिक घोषणाओं तक सीमित रह गया है। 12 फरवरी 2024 को हेमंत सोरेन सरकार ने कैबिनेट के माध्यम से जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया था। इसके बाद 24 मार्च 2025 को विधानसभा के बजट सत्र में भू-राजस्व एवं निबंधन मंत्री दीपक बिरुआ ने अगले वित्तीय वर्ष से जनगणना शुरू करने की घोषणा की। हालांकि, एक माह बीतने के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई है। आवश्यक फॉर्मेट, प्रक्रिया और शर्तों का निर्धारण अब तक अधूरा है, जिससे सरकारी तंत्र की निष्क्रियता उजागर होती है।
वहीं, सूचना आयुक्तों की नियुक्ति का मामला भी लंबे समय से अटका हुआ है। वर्ष 2020 से मुख्य सूचना आयुक्त समेत सभी पद रिक्त हैं, जिससे हजारों अपीलीय अभ्यावेदन लंबित हैं। प्रतिपक्ष के नेता के पद खाली रहने के कारण नियुक्ति प्रक्रिया में देरी हुई, लेकिन अब बाबूलाल मरांडी के प्रतिपक्ष का नेता बनने के बाद भी यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई है। चयन समिति की बैठक के प्रस्ताव को सरकार के शीर्ष स्तर पर रोक दिया गया है, जिससे यह मामला और जटिल हो गया है।
लोकायुक्त का पद भी पिछले चार वर्षों से रिक्त है। झारखंड हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई जारी है, जहां राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। संवैधानिक पदों की रिक्तता और सरकार की निष्क्रियता ने प्रशासनिक तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री की विदेश यात्रा के चलते इन नियुक्तियों की संभावना फिलहाल क्षीण है।