पलामू. “कुन्दरी लाह बागान” में भ्रष्टाचार को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद कमलेश कुमार सिंह ने पांकी विधायक शशिभूषण मेहता, चतरा सांसद सुनील कुमार सिंह, उपायुक्त पलामू, मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी JSLPS को पत्र लिखा है। साथ ही उन्होंने इस भ्रष्टाचार को लेकर सीबीआई जांच की मांग की है।
पत्र में उन्होंने लिखा है कि एशिया महादेश का सबसे बड़ा “कुन्दरी लाह बगान” में दशकों पहले हज़ारों स्थानीय ग्रामीणों के रोजगार का एकमात्र साधन था। विदेश से छात्र यहां पर घूमने, रिसर्च करने आते थे। झारखण्ड प्रदेश में सबसे ज्यादा लाह का उत्पादन करने वाला जिला पलामू था। स्थानीय ग्रामीणों को जीवन सुखमय बीत रहा था, लेकिन समय ने करवट बदला और वन विभाग की भ्रष्ट नीति सामने आई और अवैज्ञानिक खेती के कारण उत्पादन धीरे धीरे बन्द होने लगा, स्थानीय नागरिक बेरोजगार हो गये। वन विभाग के द्वारा बिचौलिय के सहयोग से उसके हरे भरे वृक्षो को काट कर ठूठ बना दिया गया।
कमलेश सिंह ने पत्र में ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा है कि वर्ष 2013 के ग्रामीणों ने एकबार फिर कुन्दरी लाह बागान को पुनर्जीवित करने का निश्चय किया और वीरान हो गए। वन क्षेत्र को बचाने की मुहिम शुरू की गई। उस वक्त लाह पोषक वृक्षों की संख्या मात्र पैंतीस हज़ार थी, जिसे ग्रामीणों ने अथक प्रयास से वर्ष 2017 तक लाखों तक पहुंचाया। तत्कालीन उपायुक्त ने इस पर संज्ञान लिया। केंद्रीय अतिरिक्त सहायता मद से पांच तालाबों के गहरीकरण होता है और वनक्षेत्र में जल स्तर बनाने में सफलता मिलती है। साथ ही राज्य सरकार से लाह उत्पादन के लिए राशि भी आवंटित की जाती है, जिसके सहयोग से 20500 पेड़ों पर लाह की खेती के लिए 70 क्विंटल लाह बिहन की ख़रीदगी वन विभाग के द्वारा की जाती है। लेकिन तत्कालीन रेंजर जितेंद्र हाजरा, वनरक्षी मोहफिज अंसारी के द्वारा बिचौलिय के सहयोग से उत्पादित सैकड़ों टन लाह को अवैध तरीके से बेच दिया जाता है। काफी विरोध के बाद उनके द्वारा उत्पादन मात्र 32 क्विंटल बताया जाता है और वृक्षों की संख्या 10000 कर दी जाती है। वन विभाग द्वारा आकड़ों में हेर फेर करके करोड़ों का घोटाला कर दिया जाता है। साथ ही जिला प्रशासन द्वारा पलाश के फूल से हर्बल गुलाल बनाने की यूनिट भी उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन वन विभाग के षड्यन्त्र के कारण वह भी बंद हो जाता है। मजदूरों को बकाया मजदूरी मांगने पर लेसलीगंज थाना में फर्जी केस भी करवा दिया जाता है l आज भी दर्जनों मजदूरों का मजदूरी बकाया है l
पत्र में आगे ध्यान आकृष्ट कराते हुए लिखा है कि वन विभाग के तत्कालीन DFO नरेशचंद्र सिंह मुंडा द्वारा पूर्व में प्रधानमंत्री को सही जानकारी देते हुए लाह खेती पेड़ों की संख्या 20500 बताई गई और बाद DFO कुमार आशीष के कार्यकाल मे घोटाले की नियत से गलत जानकारी विधायक आलोक चौरसिया के तारांकित प्रश्न के जवाब में वन विभाग ने झारखंड विधानसभा के सदन में लाह खेती में पेड़ों की संख्या 10000 कर दी गयी और वन संरक्षकों, मजदूरों को असमाजिक तत्व, गुंडा जैसे असंसदीय शब्दों का प्रयोग कर दिया जाता है, जो सदन की गरिमा को धूमिल करता हैl
कमलेश सिंह ने पांकी विधायक का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा है कि पुनः वर्ष 2019-20 में राज्य सरकार द्वारा JSLPS के सखी मंडलों को लाह खेती के लिए कुन्दरी लाह बागान के लाह पोषक वृक्षो को वृक्ष पट्टा के रूप में दिया जाता है। वर्ष 2020-2021-2022 में भी कुन्दरी लाह बागान में लाख की खेती JSLPS के सखी मंडलों के द्वारा की गई, जो निम्नवत है।
1) वर्ष 2019-20 में 4500 पेड़ों पर 900 किलोग्राम बिहन खरीदकर चढ़ाया गया। उत्पादन का कोई लेखा जोखा जारी नहीं।
2) वर्ष 2020-21 में 915 पेड़ो पर 245 किलोग्राम बिहन चढ़ाया गया। जिसमें 2476 किलोग्राम उत्पादन और स्क्रैप लाह 134 किलोग्राम अर्थात 2610 किलोग्राम हुआ। जिसे 200 रुपये किलोग्राम से व्यापारी अरविन्द कुमार को 200/- प्रति किलो की दर से बेच दिया जाता है। यह कुल उत्पादन वर्ष 2020 और 2021 का बताया जाता है। जिसे सखी मंडल के 661 महिलाओं को 2950/- रुपए प्रति महिला में वितरण करना बताया गया है, जबकि किसी भी महिला को कोई राशि प्राप्त ही नहीं हुआ है।
3) वर्ष 2021-22 में 10000 पेड़ो पर 2476 किलोग्राम बिहन चढ़ाया गया, जिसमें उत्पादन 640 किलोग्राम उत्पादन बताया जाता है। शिकायत करने पर JSLPS के DPM पलामू द्वारा लाह चोरी होने की बात बताई गई, लेकिन उनके द्वारा कोई भी विभागीय कार्रवाई नहीं की जाती है, जिससे पता चलता है कि JSLPS और वन विभाग के पदाधिकारियों के द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादित लाह को अवैध तरीके से बेच कर राशि की बंदरबांट की गई है और महिलाओ के वर्षों के परिश्रम को षड्यन्त्र पूर्वक दरकिनार कर दिया जाता रहा है, ग्रामीणों के आर्थिक उन्नति को रोकने का षड्यंत्र है।
आगे उन्होंने लिखा कि जिस प्रकार से विगत सात वर्षों से स्थानीय ग्रामीणों के साथ षड्यंत्र रचकर वन विभाग और JSLPS द्वारा भेदभाव किया जा रहा है, उससे पता चलता है कि विभाग के अधिकारियों को एशिया महादेश के सबसे बड़े लाह बागान और पलामू की पहचान पलाश से कोई लगाव नही है बल्कि उनकी मंशा ग्रामीणों को बरगलाकर हड़प नीति पर चलने की है। इसलिए उपरोक्त तथ्यों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए उसके पुनर्जीवित करने, रोजगार बढ़ाने और घोटाले की CBI जांच कराने की मांग की गयी है।